क्या आपको पता है कि आप जो हवा हर रोज़ साँस में ले रहे हैं, वो कितनी सुरक्षित है? इसका जवाब देता है AQI — Air Quality Index (वायु गुणवत्ता सूचकांक)। ये एक ऐसा मापक है जो बताता है कि आपके आसपास की हवा में प्रदूषण का स्तर कितना है। AQI जितना ज्यादा होगा, हवा उतनी ही ज़्यादा प्रदूषित मानी जाती है। इसका सीधा असर आपके फेफड़ों, दिल और समग्र स्वास्थ्य पर पड़ता है। भारत के कई शहरों में सर्दियों के मौसम में AQI “Very Poor” या “Severe” श्रेणी तक पहुँच जाता है। ऐसे में अपने और परिवार की सेहत की रक्षा करना बेहद जरूरी हो जाता है। आइए जानते हैं, AQI क्या होता है, इसे कैसे मापा जाता है और कौन-से कदम उठाकर आप प्रदूषण के असर को कम कर सकते हैं।
AQI क्या है और इसे क्यों मापा जाता है?
AQI (Air Quality Index) यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक एक ऐसा मानक है जिससे यह पता चलता है कि हवा में प्रदूषक तत्व (Pollutants) कितनी मात्रा में मौजूद हैं। AQI का उद्देश्य लोगों को यह जानकारी देना है कि उनके क्षेत्र की हवा साँस लेने के लिए कितनी सुरक्षित है। भारत में यह माप CPCB (Central Pollution Control Board) द्वारा किया जाता है, और इसे 0 से 500 तक के स्केल पर दर्शाया जाता है।
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AQI स्तर और उनका अर्थ
| AQI स्तर | वायु गुणवत्ता श्रेणी | रंग संकेत | प्रभाव |
|---|---|---|---|
| 0 – 50 | Good (अच्छी) | हरा | हवा साफ, स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित |
| 51 – 100 | Satisfactory (संतोषजनक) | हल्का हरा | संवेदनशील लोगों को हल्की परेशानी |
| 101 – 200 | Moderate (मध्यम) | पीला | लंबे समय तक रहने से स्वास्थ्य पर असर |
| 201 – 300 | Poor (खराब) | नारंगी | साँस लेने में कठिनाई, बच्चों व बुजुर्गों पर असर |
| 301 – 400 | Very Poor (बहुत खराब) | लाल | गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव |
| 401 – 500 | Severe (गंभीर) | भूरा | सभी के लिए खतरनाक, साँस व हृदय रोगियों के लिए घातक |
AQI मापने के मुख्य घटक
AQI छह प्रमुख प्रदूषकों के आधार पर मापा जाता है —
- PM10 (Particulate Matter 10 माइक्रोन)
- PM2.5 (अत्यंत सूक्ष्म कण)
- NO₂ (Nitrogen Dioxide)
- SO₂ (Sulphur Dioxide)
- CO (Carbon Monoxide)
- O₃ (Ozone)
इनमें से PM2.5 और PM10 सबसे खतरनाक माने जाते हैं क्योंकि ये फेफड़ों में गहराई तक जाकर साँस की बीमारियाँ पैदा करते हैं।
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भारत के प्रमुख शहरों में AQI की स्थिति
सर्दियों के मौसम में दिल्ली, नोएडा, पटना, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों में AQI अक्सर 300 से ऊपर पहुँच जाता है। यह “Very Poor” या “Severe” श्रेणी में आता है।
मुख्य कारण —
- पराली जलना
- वाहनों का धुआं
- औद्योगिक उत्सर्जन
- धूल और निर्माण कार्य
- मौसम में नमी व कम हवा की गति
स्वास्थ्य पर प्रभाव
- सिरदर्द, आंखों में जलन, और गले में खराश
- सांस फूलना या दमा (Asthma) के लक्षण बढ़ना
- हृदय रोगियों में तकलीफ़
- बच्चों और बुजुर्गों में फेफड़ों की कमजोरी
लंबे समय तक खराब AQI में रहना दीर्घकालिक फेफड़े और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है।
AQI सुधारने के उपाय
- वाहन कम चलाएं: कारपूल या सार्वजनिक परिवहन अपनाएं।
- पेड़ लगाएं: पौधे हवा को शुद्ध करते हैं।
- घर के अंदर पौधे रखें: जैसे मनी प्लांट, स्नेक प्लांट, एलोवेरा।
- धूल और धुएं से बचें: मास्क लगाएं, विशेषकर N95।
- घरों में एयर प्यूरीफायर लगाएं।
- खिड़कियाँ बंद रखें जब AQI “Poor” या “Severe” हो।
AQI केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि आपकी साँस की गुणवत्ता का पैमाना है। अगर हवा प्रदूषित है, तो तुरंत सावधानी बरतें। पर्यावरण की सुरक्षा सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। जितना स्वच्छ वातावरण हम बनाएंगे, उतनी ही स्वस्थ जीवनशैली पाएंगे।
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