जब हम कहते हैं कि कोई रोबोट सोच रहा है, तो असल में वह इंसान की तरह दिमाग नहीं चलाता, बल्कि मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करता है। ये दोनों ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का हिस्सा हैं, जिनकी मदद से मशीनें चीज़ों को समझती, सीखती और फैसले लेती हैं। अब चलिए, इसको बिल्कुल आसान भाषा में समझते हैं।
रोबोट सोचते कैसे हैं?
मान लीजिए आपने एक छोटे बच्चे को तस्वीर दिखाकर कहा – “ये आम है।” फिर दूसरी, तीसरी, सौवीं बार… और बच्चा सीख जाता है कि आम कैसा होता है। ऐसे ही, जब हम रोबोट या कंप्यूटर को ढेर सारी चीज़ें दिखाते हैं और बताते हैं कि क्या क्या है, तो वो भी सीखने लगता है।यही तरीका कहलाता है – मशीन लर्निंग (Machine Learning)
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मशीन लर्निंग क्या है?
मशीन लर्निंग यानी मशीन को डेटा देकर सिखाना।
जैसे:
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- आप कंप्यूटर को 5000 तस्वीरें दिखाते हैं – जिनमें से कुछ में कुत्ते हैं और कुछ में बिल्ली।
- कंप्यूटर हर तस्वीर के साथ लेबल पढ़ता है – “यह कुत्ता है”, “यह बिल्ली है”।
- फिर नया फोटो दिखाते ही कंप्यूटर कह देता है – “यह बिल्ली है!”
तो समझिए, अब वो “सोच” रहा है। यानी उसने सीखा है।
मशीन लर्निंग तब काम आती है जब काम सरल हो – जैसे मेल में स्पैम ढूंढना, या किसी चीज़ को पहचानना।
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डीप लर्निंग क्या है?
अब मान लीजिए हम कंप्यूटर को सिर्फ़ तस्वीरें दें, और लेबल भी न दें।
फिर भी वो खुद पहचान ले कि क्या है – तो ये होता है डीप लर्निंग (Deep Learning)।
डीप लर्निंग, मशीन लर्निंग से एक कदम आगे है।
इसमें मशीन खुद ही ब्रेन जैसा नेटवर्क बनाती है – जिसे न्यूरल नेटवर्क (Neural Network) कहते हैं।
जैसे इंसान का दिमाग सोचता है, वैसे ही डीप लर्निंग में कंप्यूटर सोचने की कोशिश करता है – कई लेयर में, गहराई से।
इससे मशीनें कर सकती हैं:
- आवाज़ पहचानना
- भाषा समझना
- खुद से खेल खेलना (जैसे शतरंज जीतना)
- गाड़ी चलाना
- चेहरा पहचानना
मशीन लर्निंग बनाम डीप लर्निंग – फर्क एक नजर में
| विषय | मशीन लर्निंग | डीप लर्निंग |
|---|---|---|
| काम | सीखने के लिए इंसान की मदद चाहिए | खुद सीखने की क्षमता |
| डेटा | कम डेटा में काम चल जाता है | बहुत ज़्यादा डेटा चाहिए |
| गति | तेज़ काम करता है | थोड़ा धीरे लेकिन ज्यादा गहराई से |
| उदाहरण | ईमेल फिल्टर | सेल्फ ड्राइविंग कार |
क्यों ज़रूरी है यह सब जानना?
अगर आप भविष्य में AI career after 12th चुनना चाहते हैं, तो मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग की समझ आपको हर जगह काम आएगी। आज की कंपनियों को ऐसे युवा चाहिए जो इन तकनीकों में माहिर हों और रोबोट या कंप्यूटर को “सोचने” लायक बना सकें।
रोबोट का सोचना, इंसान जैसा नहीं होता – लेकिन सीखने की प्रक्रिया वैसी ही होती है।
फर्क सिर्फ़ इतना है कि इंसान दिल से सोचता है, मशीन डेटा से।
