1857 की क्रांति से लेकर 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति तक, भारत का इतिहास संघर्ष, बलिदान और जन-जागृति की गाथाओं से भरा हुआ है। यह केवल युद्धों और आंदोलनों की कहानी नहीं है, बल्कि उन असंख्य नायकों और आंदोलनों का दस्तावेज़ है जिन्होंने भारत को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करवाया। 1857 में जब भारत में पहली बार ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह भड़का, तब से स्वतंत्रता की चिंगारी जल चुकी थी। इसके बाद INC की स्थापना, बंग-भंग आंदोलन, जलियांवाला बाग हत्याकांड, असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों ने आज़ादी की जमीं तैयार की।
इस लेख में आप जानेंगे कि 90 वर्षों में किन-किन मुख्य घटनाओं, आंदोलनों, नेताओं और घोषणाओं ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को आकार दिया। यह लेख खासतौर पर छात्रों, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवाओं और इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक संक्षिप्त और सरल गाइड है।
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1857 का विद्रोह: स्वतंत्रता का पहला संग्राम
1857 का विद्रोह, जिसे सिपाही विद्रोह या प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ शुरू हुआ और इसके कई कारण थे, जिनमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और सैन्य कारक शामिल थे। लॉर्ड डलहौजी की ‘व्यपगत का सिद्धांत’ (Doctrine of Lapse) और अंग्रेजों द्वारा भारतीय राजाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार ने राजनीतिक असंतोष को बढ़ाया। आर्थिक शोषण और भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव ने भी विद्रोह को भड़काया। इस विद्रोह का तात्कालिक कारण एनफील्ड राइफल में इस्तेमाल होने वाले कारतूस थे, जिनके बारे में अफवाह थी कि उनमें गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।
यह विद्रोह मेरठ से शुरू हुआ, जहाँ मंगल पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह किया। जल्द ही यह उत्तर भारत के बड़े हिस्सों में फैल गया, जिसमें कानपुर, लखनऊ, झांसी और दिल्ली शामिल थे। नाना साहेब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और बहादुर शाह जफर जैसे नेताओं ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। हालांकि, यह विद्रोह अंग्रेजों द्वारा कठोरता से दबा दिया गया था, लेकिन इसने भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत कर दी। इसके बाद, 1858 में, भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया, और ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया।
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राष्ट्रवाद का उदय और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन
1857 के विद्रोह के बाद, भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना का उदय हुआ। शिक्षा के प्रसार, संचार के साधनों के विकास और पश्चिमी विचारों के प्रभाव ने भारतीयों को एकजुट किया। इस दौरान, कई राजनीतिक संगठन अस्तित्व में आए। 1885 में, ए.ओ. ह्यूम नामक एक ब्रिटिश अधिकारी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) की स्थापना की। कांग्रेस का उद्देश्य भारतीयों को एक मंच पर लाना और उनकी मांगों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखना था।
कांग्रेस के शुरुआती चरण में, इसके नेता, जिन्हें नरमपंथी (Moderates) कहा जाता था, ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार थे और संवैधानिक तरीकों से सुधारों की मांग करते थे। इनमें दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे नेता शामिल थे।
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उग्रवाद का उदय और बंग-भंग आंदोलन
20वीं सदी की शुरुआत में, कांग्रेस में एक नया गुट उभरा, जिसे गरमपंथी (Extremists) कहा गया। ये नेता ब्रिटिश शासन के प्रति नरम रवैया नहीं रखते थे और स्वशासन (Swaraj) की मांग करते थे। बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल (लाल-बाल-पाल) इस गुट के प्रमुख नेता थे।
1905 में, लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया, जिसे बंग-भंग के नाम से जाना जाता है। इस विभाजन का आधिकारिक कारण प्रशासनिक सुविधा बताया गया, लेकिन इसका असली उद्देश्य हिंदू और मुसलमानों को विभाजित करना था। इस घटना के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया। यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया और इसने राष्ट्रवादी भावना को और मजबूत किया।
मुस्लिम लीग का गठन और गांधीजी का आगमन
1906 में, ब्रिटिश सरकार के समर्थन से अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (All-India Muslim League) का गठन हुआ। इसका उद्देश्य मुसलमानों के हितों की रक्षा करना था, लेकिन यह धीरे-धीरे एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग करने लगा।
1915 में, महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उन्होंने चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में सफल सत्याग्रह आंदोलन चलाए, जिससे वे एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे। गांधीजी के नेतृत्व में, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली, जो अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित थी।
असहयोग आंदोलन और साइमन कमीशन
1919 में, जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस घटना के विरोध में, गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में भारतीयों से ब्रिटिश सरकार के साथ किसी भी प्रकार के सहयोग से इनकार करने का आग्रह किया गया। लोगों ने सरकारी नौकरियों, स्कूलों और अदालतों का बहिष्कार किया। हालांकि, 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद, गांधीजी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया।
1928 में, ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन भारत भेजा, जिसका उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा करना था। इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था, जिससे इसका व्यापक विरोध हुआ। लाला लाजपत राय ने लाहौर में इस कमीशन का विरोध करते हुए लाठीचार्ज में अपनी जान गंवा दी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और गोलमेज सम्मेलन
1930 में, गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया, जिसकी शुरुआत दांडी मार्च से हुई। गांधीजी ने नमक कानून तोड़कर ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी। इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर लोगों ने भाग लिया। इस दौरान, ब्रिटिश सरकार ने भारत के भविष्य पर चर्चा के लिए तीन गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन किया, जिनमें से दूसरे सम्मेलन में गांधीजी ने भाग लिया।
1935 में, ब्रिटिश सरकार ने भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित किया, जिसने प्रांतों को अधिक स्वायत्तता दी और एक संघीय ढांचा स्थापित करने का प्रस्ताव रखा।
भारत छोड़ो आंदोलन और द्वितीय विश्व युद्ध
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की सहमति के बिना भारत को युद्ध में शामिल कर दिया। इसके विरोध में, गांधीजी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया और ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम को एक निर्णायक मोड़ दिया। इस दौरान, सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन किया और भारत को सैन्य बल से स्वतंत्र कराने का प्रयास किया।
स्वतंत्रता और विभाजन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटेन कमजोर हो गया और भारत को स्वतंत्र करने के लिए तैयार हो गया। मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र, पाकिस्तान, की मांग पर जोर दिया। 1947 में, लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के विभाजन की योजना प्रस्तुत की।
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन साथ ही भारत और पाकिस्तान के रूप में दो राष्ट्रों में विभाजित हो गया। विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और लाखों लोग विस्थापित हुए। इस प्रकार, भारत ने एक लंबी और कठिन लड़ाई के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन इसके साथ ही विभाजन का दर्द भी सहा।
