क्या कभी आपने सुना है कि बारिश ‘करवाई’ जा सकती है? जी हां, अब यह सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि विज्ञान की एक सच्चाई है। क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) एक ऐसी तकनीक है जिसके ज़रिए बादलों को कृत्रिम रूप से बारिश करने के लिए प्रेरित किया जाता है। जब प्राकृतिक रूप से बारिश नहीं होती, तब यह तकनीक आसमान से बूंदें बरसाने में मदद करती है। आइए जानते हैं आखिर क्लाउड सीडिंग होती कैसे है, इसमें क्या प्रक्रिया शामिल होती है और यह कितनी प्रभावी है।
क्लाउड सीडिंग क्या है? — बादलों से बारिश करवाने की वैज्ञानिक तकनीक
क्लाउड सीडिंग एक कृत्रिम वर्षा (Artificial Rainfall) तकनीक है जिसमें वैज्ञानिक बादलों के अंदर रासायनिक पदार्थ (Chemical Agents) छोड़ते हैं ताकि वे बारिश की बूंदों का रूप ले सकें।
इन पदार्थों में मुख्य रूप से सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), सोडियम क्लोराइड (Common Salt) या पोटैशियम आयोडाइड का उपयोग किया जाता है।
जब ये कण बादलों के ठंडे हिस्सों में पहुंचते हैं, तो जलवाष्प उनके चारों ओर जमा होकर बर्फ के कण या बूंदों में बदल जाते हैं — यही प्रक्रिया आगे चलकर बारिश में परिवर्तित होती है।
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कैसे की जाती है क्लाउड सीडिंग — आसमान से लेकर ज़मीन तक की प्रक्रिया
क्लाउड सीडिंग के लिए दो मुख्य तरीके अपनाए जाते हैं:
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एयरक्राफ्ट मेथड: विमान या ड्रोन के ज़रिए रासायनिक पदार्थ बादलों में छोड़े जाते हैं।
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ग्राउंड बेस्ड मेथड: ज़मीन से ही विशेष मशीनों के ज़रिए ये कण हवा में छोड़े जाते हैं ताकि वे बादलों तक पहुंच सकें।
वैज्ञानिक पहले मौसम का विश्लेषण (Weather Analysis) करते हैं ताकि यह तय किया जा सके कि बादलों की नमी, तापमान और हवा की दिशा सीडिंग के लिए अनुकूल है या नहीं। फिर सिल्वर आयोडाइड जैसे पदार्थों को बादलों में फैलाया जाता है और 15-30 मिनट में वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
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क्लाउड सीडिंग से क्यों की जाती है बारिश — उद्देश्य और लाभ
क्लाउड सीडिंग का मुख्य उद्देश्य उन क्षेत्रों में वर्षा करवाना होता है जहाँ सूखा या बारिश की कमी रहती है।
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कृषि में मदद: फसलों के लिए नमी बनाए रखने में उपयोगी।
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जल संकट समाधान: बांधों और झीलों में जलस्तर बढ़ाने के लिए।
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वायु प्रदूषण कम करना: धूल और प्रदूषक कणों को नीचे लाकर हवा को शुद्ध बनाता है।
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जंगल की आग रोकने में सहायक: सूखे इलाकों में कृत्रिम वर्षा आग बुझाने में मदद कर सकती है।
क्लाउड सीडिंग के वैज्ञानिक सिद्धांत — कैसे बनती है बारिश की बूंद
जब बादलों में छोटे-छोटे जलकण या बर्फ के क्रिस्टल मौजूद होते हैं, तो उनमें रासायनिक कण डालने से वे कंडेन्सेशन नाभिक (Condensation Nuclei) का काम करते हैं।
ये नाभिक जलवाष्प को आकर्षित करते हैं और धीरे-धीरे उनके चारों ओर पानी की परत जम जाती है। जब यह परत भारी हो जाती है, तो वह गुरुत्वाकर्षण (Gravity) के कारण नीचे गिरने लगती है और यही हमें बारिश के रूप में दिखती है।
भारत और दुनिया में क्लाउड सीडिंग — कहाँ-कहाँ हुआ प्रयोग
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भारत में: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में क्लाउड सीडिंग के प्रयोग किए गए हैं।
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दुनिया में: अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, रूस और यूएई (UAE) जैसे देशों ने इसे बड़े पैमाने पर अपनाया है।
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चीन ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक के दौरान बारिश रोकने और करवाने दोनों के लिए इस तकनीक का सफल उपयोग किया था।
क्लाउड सीडिंग की सीमाएँ और विवाद
हालांकि यह तकनीक कई बार सफल साबित हुई है, लेकिन इसके कुछ चुनौतियाँ और जोखिम भी हैं:
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हर बार बारिश की गारंटी नहीं मिलती, यह मौसम की स्थिति पर निर्भर करती है।
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सिल्वर आयोडाइड जैसे रासायनिक तत्वों के पर्यावरण पर प्रभाव को लेकर बहस जारी है।
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अधिक प्रयोग से प्राकृतिक वर्षा चक्र में हस्तक्षेप की आशंका भी जताई जाती है।
भविष्य में क्लाउड सीडिंग की भूमिका
बदलते मौसम और जलवायु संकट के दौर में क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीकें बहुत उपयोगी साबित हो सकती हैं। यदि इनका उपयोग वैज्ञानिक रूप से और नियंत्रित तरीके से किया जाए तो यह सूखा प्रभावित इलाकों, प्रदूषणग्रस्त शहरों और कृषि क्षेत्र के लिए वरदान बन सकती है।