विश्वकर्मा पूजा

विश्वकर्मा पूजा हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है। यह दिन देवताओं के शिल्पकार और वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है। भगवान विश्वकर्मा को संसार का प्रथम इंजीनियर और कारीगर माना जाता है, जिन्होंने स्वर्गलोक, इंद्रपुरी और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था। इस दिन विशेष रूप से कारखानों, वर्कशॉप, फैक्ट्रियों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों और कार्यालयों में पूजा का आयोजन होता है। लोग अपने औजार, मशीनें और वाहन साफ करके भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा के सामने रखते हैं और उनकी सुरक्षा व सुचारु कार्यप्रणाली की प्रार्थना करते हैं। यह पर्व कारीगरों, इंजीनियरों, मजदूरों और उद्योग से जुड़े सभी लोगों के लिए आस्था और सम्मान का प्रतीक है। विश्वकर्मा पूजा का मुख्य संदेश है – मेहनत और कौशल ही प्रगति की कुंजी है। भारत में यह त्योहार खासकर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और उत्तर-पूर्वी राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

भगवान विश्वकर्मा कौन हैं?

भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार कहा जाता है। मान्यता है कि उन्होंने स्वर्गलोक, द्वारका नगरी, इंद्रपुरी, पुष्पक विमान और अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र बनाए। उन्हें संसार का पहला इंजीनियर और आर्किटेक्ट माना जाता है।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व

  • यह पर्व मेहनतकश लोगों, इंजीनियरों, मजदूरों और कारीगरों को समर्पित है।

  • मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कामकाज में सफलता और सुरक्षा मिलती है।

  • औद्योगिक प्रतिष्ठानों, वर्कशॉप और फैक्ट्रियों में इस दिन विशेष उत्सव होता है।

पूजा विधि और परंपराएँ

  • सुबह मशीनों, औजारों और वाहनों को साफ कर सजाया जाता है।

  • भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित करके पूजा की जाती है।

  • औजारों और मशीनों पर तिलक कर फूल और धूप अर्पित किए जाते हैं।

  • श्रमिक और कर्मचारी कार्यस्थल पर प्रसाद और भोग का आनंद लेते हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

विश्वकर्मा पूजा केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि श्रम और कौशल का उत्सव है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि मेहनतकश हाथों से ही समाज की प्रगति और सभ्यता का निर्माण होता है।

Read More
WhatsApp YouTube Twitter Quora