बिहार विधानसभा चुनाव 2025: चुनाव परिणामों से जुड़े रोचक तथ्य: क्या आप जानते हैं ये बातें? (Election Result Facts in Hindi)
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मौके पर जानिए चुनाव परिणामों से जुड़े रोचक तथ्य — EVM, BLO, स्ट्रॉन्ग रूम, राउंड और रुझान की पूरी प्रक्रिया। समझिए कैसे होती है वोटों की गिनती और कैसे तय होता है विजेता।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई दे रही है। इस बार जनता फिर से तय करेगी कि सूबे की कमान किसके हाथों में होगी। चुनाव आयोग ने मतदान की तारीखें घोषित कर दी हैं—पहला चरण 6 नवंबर 2025 को और दूसरा चरण 11 नवंबर 2025 को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को की जाएगी। कुल 243 विधानसभा सीटों पर होने वाले इस महासमर में जनता विकास, रोजगार, शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर अपनी राय देगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आपके वोट की गिनती कैसे होती है? “राउंड” या “रुझान” का क्या मतलब होता है? और वोटों को जिस स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, वहाँ होता क्या है? आइए जानते हैं चुनाव परिणामों से जुड़ी वो दिलचस्प बातें, जो हर जागरूक मतदाता को जरूर जाननी चाहिए — ईवीएम से लेकर बीएलओ तक, मतगणना से लेकर सुरक्षा व्यवस्था तक, हर रहस्य खुलासा यहीं।
EVM क्या होती है और क्यों है यह इतनी भरोसेमंद मशीन
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM भारत के चुनावी इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी खोजों में से एक मानी जाती है। यह मशीन 1982 में पहली बार केरल के एर्नाकुलम जिले में प्रयोग की गई थी। इसमें दो हिस्से होते हैं—कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट। जब मतदाता किसी उम्मीदवार के चिन्ह वाले बटन को दबाता है, तो वोट तुरंत रिकॉर्ड हो जाता है और मशीन “लॉक” हो जाती है ताकि कोई दोबारा वोट न डाल सके। यही कारण है कि EVM को पारदर्शिता और निष्पक्षता का प्रतीक माना जाता है। मतदान समाप्त होने के बाद मशीनों को सील कर स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, जहाँ सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी होती है।
पहली बार EVM का प्रयोग कब और कहाँ हुआ था
भारत में EVM का पहला उपयोग 1982 में केरल के परवूर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था। उस समय इसे सिर्फ 50 बूथों पर प्रयोगात्मक रूप से लगाया गया था। बाद में 1992 में संसद ने धारा 61A जोड़कर EVM को कानूनी मान्यता दी। 1998 से चुनाव आयोग ने इसका व्यापक उपयोग शुरू किया। आज भारत के हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में EVM का प्रयोग होता है, जिससे कागज़ की बचत, पारदर्शिता और तेज़ परिणाम संभव होते हैं। यह तकनीक अब कई अन्य देशों ने भी अपनाई है।
BLO कौन होता है और क्या करता है उसका काम
BLO (Booth Level Officer) यानी बूथ स्तर का अधिकारी, चुनाव आयोग का एक अहम प्रतिनिधि होता है। यह स्थानीय सरकारी कर्मचारी होता है जो अपने क्षेत्र में मतदाताओं की जानकारी एकत्र करता है, वोटर लिस्ट अपडेट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि हर पात्र नागरिक को वोट देने का अधिकार मिले। जब कोई नया वोटर पंजीकरण कराता है या वोटिंग कार्ड की आवश्यकता होती है, तो वही BLO सबसे पहले संपर्क में आता है। उसे मतदान क्षेत्र का “नायक” कहा जा सकता है जो बूथ पर सबकुछ व्यवस्थित रखता है।
स्ट्रॉन्ग रूम क्या होता है और यहाँ क्यों रहती है सुरक्षा चौकस
वोटिंग खत्म होने के बाद सभी EVM मशीनों को एक सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है, जिसे स्ट्रॉन्ग रूम कहा जाता है। यहाँ तक पहुँचने की अनुमति सिर्फ अधिकृत अधिकारियों और प्रत्याशियों के एजेंटों को ही होती है। इस कमरे में 24 घंटे पुलिस और केंद्रीय बल की निगरानी रहती है। मतगणना के दिन इन्हीं स्ट्रॉन्ग रूम्स को खोला जाता है और वोटों की गिनती शुरू होती है। यह पूरा प्रक्रिया कैमरे की निगरानी में होती है, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
EVM में डेटा कितने समय तक सुरक्षित रहता है
EVM मशीन की आयु लगभग 15 वर्ष मानी जाती है। लेकिन इसमें रिकॉर्ड किया गया डेटा तब तक सुरक्षित रहता है जब तक नई वोटिंग की तैयारी नहीं शुरू हो जाती। मतदान समाप्त होने के बाद मशीनें पूरी तरह सील कर दी जाती हैं और तभी खोली जाती हैं जब चुनाव आयोग आदेश देता है। यही तकनीकी मजबूती इसे छेड़छाड़ से सुरक्षित बनाती है।
मतगणना (Counting) क्या होती है और कैसे शुरू होती है
मतगणना की प्रक्रिया दो भागों में होती है—पहले पोस्टल बैलट (PB) और ETPB (इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट) की गिनती होती है। लगभग आधे घंटे बाद EVM में पड़े वोट गिने जाते हैं। ये प्रक्रिया रिटर्निंग ऑफिसर की देखरेख में होती है। हर उम्मीदवार या उनके एजेंट इस गिनती के दौरान उपस्थित रहते हैं। जब वोट गिने जाते हैं, तो धीरे-धीरे “रुझान” आने लगते हैं—कौन आगे, कौन पीछे।
राउंड और रुझान का क्या होता है असली मतलब
जब भी आप टीवी पर सुनते हैं कि “पहले राउंड का नतीजा आ गया”, तो इसका मतलब होता है कि एक निश्चित संख्या की EVM (अक्सर 14) में डाले गए वोटों की गिनती पूरी हो चुकी है। प्रत्येक राउंड के बाद नया रुझान आता है। इसी तरह कुल EVM गिनती पूरी होने के बाद अंतिम परिणाम घोषित होता है। यही “राउंड बाय राउंड” ट्रेंडिंग सिस्टम भारत की चुनावी गिनती की पहचान है।
चुनाव नतीजों से जुड़े कुछ दिलचस्प चुनावी तथ्य जो शायद आपको न पता हों
- भारत में हर चुनाव में लगभग 90 लाख EVM मशीनें इस्तेमाल होती हैं।
- देश में अब तक 900 मिलियन से अधिक मतदाता पंजीकृत हैं।
- सबसे ज्यादा मतदान उत्तर प्रदेश में होता है क्योंकि यह सबसे बड़ा राज्य है।
- मतगणना केंद्रों पर एक भी मोबाइल फोन या कैमरा ले जाना सख्त मना है।
- हर EVM में एक “वोटर वेरिफिकेशन पेपर ट्रेल (VVPAT)” जुड़ी होती है, जिससे वोट की पुष्टि हो सके।
- भारत में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था, जिसमें करीब 17 करोड़ मतदाता थे।
- ईवीएम (Electronic Voting Machine) का प्रयोग पहली बार 1982 में केरल के एर्नाकुलम जिले में किया गया था।
- भारत का चुनाव आयोग दुनिया का सबसे बड़ा स्वतंत्र निर्वाचन निकाय है।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 91 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे—यह दुनिया का सबसे बड़ा मतदान था।
- कई बार उम्मीदवारों की जीत केवल 1 वोट से तय हुई—यह हर वोट की कीमत बताता है।
- मतगणना के लिए इस्तेमाल होने वाले कमरों को Strong Room कहा जाता है, जहां सुरक्षा इतनी कड़ी होती है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
- BLO (Booth Level Officer) चुनाव आयोग का स्थानीय प्रतिनिधि होता है जो मतदाता सूची और बूथ प्रबंधन संभालता है।
- एक “राउंड” की गिनती का मतलब होता है करीब 14 ईवीएम में डाले गए वोटों की गणना।
- EVM का डेटा 15 साल तक सुरक्षित रहता है, जब तक अगला चुनाव न हो जाए।
- भारत में चुनावों के लिए 12 लाख से ज्यादा मतदान केंद्र बनाए जाते हैं—यह किसी पर्व से कम नहीं।
बिहार चुनाव 2025 और चुनावी प्रक्रिया के दिलचस्प तथ्य
- बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं, जिनमें से बहुमत के लिए 122 सीटों की आवश्यकता होती है।
- इस बार चुनाव दो चरणों में होंगे—पहला 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर 2025 को।
- मतगणना 14 नवंबर 2025 को होगी।
- देशभर में हर चुनाव में करीब 90 लाख EVM मशीनें इस्तेमाल की जाती हैं।
- मतगणना केंद्रों में मोबाइल और कैमरा ले जाना सख्त मना है।
- हर EVM में VVPAT प्रणाली जुड़ी होती है, जिससे वोटर अपने मत की पुष्टि कर सकता है।
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